पूजन विधि को संक्षिप्त में समझना महत्वपूर्ण है। पूजा के लिए शुद्धता, सामग्री की उपयोगिता, और विधान का समयानुसार अनुसरण करना आवश्यक होता है। ध्यान और भक्ति के साथ इस विधि को पालन करने से पूजन का महत्व और पूजन विधि का अर्थ समझ में आता है। पूजन विधि के बारे में संक्षिप्त में जानने के लिए आगे पढ़े।
देवता या देवी की पूजा से पहले, हमें अपने शरीर, पूजन-वस्तु और मन को शुद्ध करना अत्यंत आवश्यक है। पूजा की विभिन्न विधियाँ होती हैं, जिनका पालन करना महत्वपूर्ण होता है।
पूजन विधि का संक्षिप्त विवरण
पञ्चोपचार
पञ्चोपचार के अनुसार पूजन में पांच मुख्य चरण होते हैं: १- गन्ध (सुगंधित पदार्थ), २- पुष्प (फूल), ३- धूप (धूपक), ४- दीप (दीपक), और ५- नैवेद्य (भोग)। इन चरणों के द्वारा भक्ति और समर्पण का अभिव्यक्ति किया जाता है।
दशोपचार
पूजा में दशोपचार के द्वारा भगवान को समर्पित किया जाता है। इसमें दस मुख्य क्रियाएं होती हैं: १- पाद्य (जल), २- अर्घ्य, ३- आचमन, ४- स्नान, ५- वस्त्र, ६- गन्ध (सुगंध), ७- पुष्प (फूल), ८- धूप (धूपक), ९- दीप (दीपक), और १०- नैवेद्य (भोग)।
षोडशोपचार
षोडशोपचार का मतलब है उन सोलह क्रियाएं जिनसे देवी-देवताओं का पूजन किया जाता है। इस पूजा में सोलह विधियों के अनुसार देवी-देवताओं की आराधना की जाती है। पूजा में षोडशोपचार के द्वारा भगवान को समर्पित किया जाता है। इसमें सोलह मुख्य क्रियाएं होती हैं: १- पाद्य (जल), २- अर्घ्य, ३- आचमन, ४- स्नान, ५- वस्त्र, ६- आभूषण, ७- गन्ध (सुगंध), ८- पुष्प (फूल), ९- धूप (धूपक), १०- दीप (दीपक), ११- नैवेद्य (भोग), १२- आचमन, १३- ताम्बूल (पान), १४- स्तवपाठ (भजन), १५- तर्पण (पुष्पाञ्जलि), और १६- नमस्कार।
आचमन
आचमन कैसे किया जाता है?
आचमन का मतलब है हाथ में जल लेकर उसे पीना।
प्रारम्भ में ‘ॐ केशवाय नमः‘, ‘ॐ नारायणाय नमः‘, और ‘ॐ माधवाय नमः‘ मन्त्रों का जप करें। फिर ‘ॐ हृषीकेशाय नमः‘ कहकर हाथ धोएं। यह सभी क्रियाएं आचमन के रूप में की जाती हैं जो पूजा की शुरुआत में की जाती है।
शरीरशुद्धि
शरीरशुद्धि कैसे करते हैं?
“शरीरशुद्धि” का अर्थ है शरीर की शुद्धि। इसके लिए निचे लिखे मंत्र को पढ़ा जाता है।
ॐ अपवित्रः पवित्रो वा सर्वावस्थां गतोऽपि वा।
यः स्मरेत्पुण्डरीकाक्षं स बाह्याभ्यन्तरः शुचिः ॥
इस मंत्र के उच्चारण के बाद, अपने शरीर को जल से सोचन करें (जल छिड़कना)
उसके बाद, मङ्गलपाठ करें और श्री गणेश को ध्यान में लें।
वक्रतुण्ड महाकाय कोटिसूर्यसमप्रभ ।
निर्विघ्नं कुरु मे देव सर्वकार्येषु सर्वदा ॥
शुक्लाम्बरधरं देवं शशिवर्णं चतुर्भुजम् ।
प्रसन्नवदनं ध्यायेत् सर्वविघ्नोपशान्तये ॥
ये श्लोक गणेश जी की स्तुति में गाए जाते हैं। पहला श्लोक उनकी विशालता और प्रकाशमान तेज की प्रशंसा करता है, और उनसे सभी कार्यों में बिना किसी बाधा के सफलता की प्रार्थना करता है। दूसरा श्लोक उनके शुभ्र वस्त्र, चंद्रमा के समान वर्ण, चार भुजाओं और प्रसन्न चेहरे का ध्यान करते हुए सभी विघ्नों के शांत होने की कामना करता है। ये श्लोक आध्यात्मिक शांति और सकारात्मकता का संचार करते हैं।
संकल्प
संकल्प कैसे किया जाता है?
“संकल्प” का अर्थ है एक संकल्प या निश्चय बनाना। यह पूजा की शुरुआत में किया जाता है, जिसमें शिष्टाचार, संगीत, विधि, समय और देवता की उपासना का उद्देश्य बताया जाता है।
हाथ में अक्षत और पुष्प आदि लेकर, पूजन का संकल्प करें।
ॐ विष्णुर्विष्णुर्विष्णुः अच्द्य… अहं श्रुतिस्मृतिपुराणोक्तफलप्राप्त्यर्थं श्रीपरमेश्वरप्रीत्यर्थं च देवस्य [ देव्याः ] पूजनं करिष्ये ।
ध्यान
ध्यान का अर्थ है मन को एकाग्र करके अपने भगवान्, जिनकी वो पूजा करने बैठा है उनपर ध्यान केंद्रित करना। ध्यान करते समय व्यक्ति अपने भगवान् में लीन होने का प्रयास करता है। ध्यान करने से मन की स्थिरता और आत्मसंयम बढ़ता है।
जिस देवताकी पूजा करनी हो उसका ध्यान कर ले। (जैसे-‘विष्णवे नमः’ विष्णुको नमस्कार कर ले। इसी तरह जिस देवीका ध्यान करना हो उस देवीका ध्यान करे। जैसे- ‘दुर्गादेव्यै नमः’ – दुर्गादेवीको नमस्कार कर ले।)
आवाहन
आवाहन का अर्थ है किसी देवता या उनकी शक्ति को अपने पास बुलाना या बुलवाना। पूजा या यज्ञ के अवसर पर, पूजारी या यजमान आवाहन करके देवता को अपनी सम्मुख स्थान पर आमंत्रित करते हैं। इससे देवता या शक्ति का आगमन होता है और पूजन का प्रारम्भ होता है।
हाथ में अक्षत और पुष्प लेकर, उस देवता का आवाहन करें।
अमुक-देवाय/देव्यै नमः, आवाहयामि। (अक्षत और पुष्पों को जमीन पर छोड़ दें।)
(* अमुक के स्थान पर जिस देवी-देवता का पूजन करना हो, वहाँ उस देवी-देवता का उच्चारण करना चाहिए।)
आसन
आसन का अर्थ है बैठने का स्थान या बैठने की विधि। पूजा के समय, विशेष रूप से पूजा के लिए विराजमान होने के लिए एक आसन का चयन किया जाता है। इससे व्यक्ति की स्थिरता बढ़ती है और पूजा क्रिया को ध्यानपूर्वक किया जा सकता है।
अक्षत और पुष्प लेकर निम्न मंत्र का उच्चारण करके आसन प्रदान करें
अनेकरत्नसंयुक्तं नानामणिगणान्वितम्।
इदं हेममयं दिव्यमासनं प्रतिगृह्यताम् ॥
‘आसनं समर्पयामि’ अमुक-देवाय / देव्यै नमः ।
(* अमुक के स्थान पर जिस देवी-देवता का पूजन करना हो, वहाँ उस देवी-देवता का उच्चारण करना चाहिए।)
पाद्य –
पाद्य का अर्थ है पैरों में जल चढ़ाकर स्वागत करना। यह पूजा के प्रारम्भ में किया जाता है। पाद्य का आदान-प्रदान करते समय व्यक्ति पानी को देवी-देवताओं के पादों में चढ़ाकर उनका स्वागत करता है।
‘पादयोः पाद्यं समर्पयामि’ अमुक-देवाय / देव्यै नमः ।
अर्घ्य –
‘हस्तयोरर्घ्यं समर्पयामि’ अमुक-देवाय/देव्यै नमः ।
(* अमुक के स्थान पर जिस देवी-देवता का पूजन करना हो, वहाँ उस देवी-देवता का उच्चारण करना चाहिए।)
आचमन –
‘आचमनीयं जलं समर्पयामि’ अमुक-देवाय / देव्यै नमः ।
स्नान-
‘स्नानीयं जलं समर्पयामि’ अमुक-देवाय/देव्यै नमः ।
वस्त्र –
‘वस्त्रोपवस्त्रं समर्पयामि’ अमुक-देवाय/देव्यै नमः ।
यज्ञोपवीत –
यज्ञोपवीत, जिसे धारण किया जाता है, एक प्राचीन हिन्दू संस्कार है जो विशेष रूप से पुरुषों के लिए होता है। यह एक धागा या ब्रह्मसूत्र होता है जो ब्राह्मण के ऊपरी शरीर के साथ वायुमण्डल को बाँधने के लिए प्रयोग किया जाता है। यह व्यक्ति को उपनयन संस्कार के बाद दिया जाता है और उसके वैदिक शिक्षण की शुरुआत को संकेत करता है।
‘यज्ञोपवीतं समर्पयामि’ अमुक-देवाय नमः।
चन्दन –
‘चन्दनं समर्पयामि’ अमुक-देवाय/देव्यै नमः ।
(* अमुक के स्थान पर जिस देवी-देवता का पूजन करना हो, वहाँ उस देवी-देवता का उच्चारण करना चाहिए।)
अक्षत-
यह शुद्ध अनाज के बीज होते हैं जो धार्मिक आचरणों में प्रयोग होते हैं, विशेष रूप से पूजा या यज्ञ में। इसे पूजा के दौरान देवताओं के लिए प्रस्तुत किया जाता है और इसका अर्थ होता है अविनाशी आशीर्वाद और समृद्धि। अक्षत देवी-देवताओं को प्रसन्न करने और उनके आशीर्वाद की प्राप्ति के लिए उपयोग किया जाता है।
‘अक्षतान् समर्पयामि’ अमुक-देवाय/देव्यै नमः ।
पुष्प-
‘पुष्पाणि समर्पयामि’ अमुक-देवाय/देव्यै नमः ।
पुष्पमाला –
‘पुष्पमालां समर्पयामि’ अमुक-देवाय/देव्यै नमः ।
धूप-
‘धूपमाघ्रापयामि’ अमुक-देवाय/देव्यै नमः ।
दीप-
‘दीपं दर्शयामि’ अमुक-देवाय/देव्यै नमः ।
नैवेद्य-
नैवेद्य का अर्थ होता है भगवान को भोग या प्रसाद के रूप में प्रस्तुत किया जाने वाला आहार। यह पूजा या यज्ञ के दौरान भगवान को समर्पित किया जाता है, जिसमें आमतौर पर आत्मबलिदान, फल, घी, चावल, मिष्ठान्न आदि शामिल हो सकते हैं। यह भगवान के आशीर्वाद की प्राप्ति के लिए प्रार्थना का एक उपाय है।
‘नैवेद्यं निवेदयामि’ अमुक-देवाय/देव्यै नमः ।
फल-
‘फलं समर्पयामि’ अमुक-देवाय/देव्यै नमः ।
(* अमुक के स्थान पर जिस देवी-देवता का पूजन करना हो, वहाँ उस देवी-देवता का उच्चारण करना चाहिए।)
ताम्बूल –
ताम्बूल एक परंपरागत भारतीय रसायन है जो धनिया, सौंफ़, पान के पत्ते, गुड़ और खासतर सेवों को शामिल करता है। इसे पूजा, समारोह या मेहमानों को देने के लिए उपयोग किया जाता है। इसका सेवन शांति और सुख के लिए लोकप्रिय है, और यह पारंपरिकता में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
‘ताम्बूलं समर्पयामि’ अमुक-देवाय/देव्यै नमः ।
दक्षिणा –
दक्षिणा का अर्थ है दान या अनुदान। धार्मिक संदर्भ में, यह दान का प्रकार है जिसमें धन या अन्य समर्पण के रूप में दिया जाता है। यह पूजा या धार्मिक कार्यों में देवी-देवताओं के लिए दिया जाता है और आमतौर पर धर्मिक उद्योगों का समर्थन किया जाता है।
‘दक्षिणां समर्पयामि’ अमुक-देवाय / देव्यै नमः ।
आरती –
आरती का अर्थ होता है देवी-देवताओं की पूजा के दौरान चिरंजीवित जल, धूप, घी या दियों की आरती करना। इस रीति से देवी-देवताओं को आदर और समर्पण दिखाया जाता है, और उनकी प्रार्थना और आशीर्वाद की अपेक्षा की जाती है।
‘आरार्तिक्यं समर्पयामि’ अमुक-देवाय/देव्यै नमः ।
मन्त्रपुष्पाञ्जलि –
मन्त्रपुष्पाञ्जलि का अर्थ है मंत्रों की एक फूलमाला। यह मंत्रों का समूह होता है जो व्यक्ति देवी-देवताओं को समर्पित करते हुए उन्हें प्रदान करता है। मन्त्रपुष्पाञ्जलि को प्रदान करने से पूजा का समापन होता है और देवी-देवताओं के आशीर्वाद की प्रार्थना की जाती है।
‘मन्त्रपुष्पाञ्जलिं समर्पयामि’ अमुक- देवाय/देव्यै नमः ।
प्रदक्षिणा –
प्रदक्षिणा का अर्थ है विशेष रूप से मंदिर या देवालय में उपस्थित देवी-देवताओं के चारों ओर परिक्रमा करना। इस रीति से देवी-देवताओं की प्रतिष्ठा का समर्थन किया जाता है और उनकी कृपा की प्रार्थना की जाती है।
‘प्रदक्षिणां समर्पयामि’ अमुक-देवाय/देव्यै नमः ।
नमस्कार –
‘प्रार्थनापूर्वकं नमस्कारान् समर्पयामि’ अमुक- देवाय/देव्यै नमः ।
(* अमुक के स्थान पर जिस देवी-देवता का पूजन करना हो, वहाँ उस देवी-देवता का उच्चारण करना चाहिए।)
इसके बाद क्षमा याचना करे
मन्त्रहीनं क्रियाहीनं भक्तिहीनं जनार्दन ।
यत्पूजितं मया देव परिपूर्ण तदस्तु मे ॥
आवाहनं न जानामि न जानामि विसर्जनम् ।
पूजां चैव न जानामि क्षमस्व परमेश्वर ।।
अन्यथा शरणं नास्ति त्वमेव शरणं मम ।
तस्मात् कारुण्यभावेन रक्ष मां परमेश्वर ।।
समर्पण –
“समर्पण” का अर्थ है किसी वस्तु, भाव, या कार्य को पूर्णतः समर्पित करना। धार्मिक संदर्भ में, इसका मतलब है अपनी भक्ति, प्रेम, या सेवा को भगवान को समर्पित करना। यह आत्मसमर्पण और सेवा की भावना को दर्शाता है।
‘ ॐ तत्सद् ब्रह्मार्पणमस्तु’ (कहकर समस्त पूजन- कर्म भगवान्को निवेदित कर दे।)
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