आरती क्या है और कैसे करनी चाहिये, ये जानने के लिए आगे पढ़ें।
आरती क्या है?
आरती एक प्रकार की धार्मिक रीति है जिसमें देवी-देवताओं के प्रति भक्ति और आदर्श का अभिव्यक्ति किया जाता है। यह पूजा के अंत में की जाती है और इसका महत्वपूर्ण हिस्सा है।
आरती के दौरान ध्वनि, धूप, दीपों का उद्घाटन किया जाता है और इसे देवी-देवताओं की पूजा की विशेष अर्चना के रूप में माना जाता है। आरती में मंत्रों का पाठ किया जाता है और प्रदर्शित की जाने वाली आरती के गीतों के माध्यम से भक्ति और श्रद्धा का अभिव्यक्ति किया जाता है।
आरती के दौरान विशेष ध्यान देना चाहिए, और साथ ही दिया जलाना, फूलों के हार चढ़ाना, और मंगलारती गीतों का उच्चारण करना चाहिए। ध्यान देने के लिए, आरती के दौरान ध्यानपूर्वक उन्हें देखा जाता है। आरती का प्रारंभ और समापन आसानी से और ध्यानपूर्वक किया जाना चाहिए।
आरती क्यू करनी चाहिए?
आरती को ‘आरात्रिक’ अथवा ‘आरार्तिक’ कहा जाता है, और इसे पूजा के अंत में प्रदर्शित किया जाता है। यह पूजा के किसी भी त्रुटि को दूर करने के लिए महत्वपूर्ण माना जाता है। इसका उल्लेख स्कन्द पुराण में भी किया गया है।
मन्त्रहीनं क्रियाहीनं यत् कृतं पूजनं हरेः ।
सर्वं सम्पूर्णतामेति कृते नीराजने शिवे ॥
जी हां, नीराजन (आरती) का महत्वपूर्ण और अद्वितीय रूप है। यह एक धार्मिक आदर्श है जो भक्ति और आदर का प्रतीक है। पूजन में मन्त्र और क्रियाओं का अभाव होने पर भी, नीराजन करने से उसमें सारी पूर्णता आती है, क्योंकि यह भावनात्मक समर्पण का प्रतीक होता है और देवी-देवताओं के प्रति अटल आदर्श और प्रेम का अभिव्यक्ति करता है।
आरती में सम्मिलित क्यू होना चाहिए?
आरती को देखना और उसकी महिमा का अनुभव करना भगवान के आदर्श के प्रति आदर और श्रद्धा का अभिव्यक्ति है। यह धार्मिक गतिविधि में सामूहिक भक्ति का एक उत्कृष्ट रूप है और आत्मा को शुद्ध करने और संवाद को स्थापित करने में मदद करता है।
“हरिभक्तिविलास” में एक श्लोक है –
नीराजनं च यः पश्येद् देवदेवस्य चक्रिणः ।
सप्तजन्मनि विप्रः स्यादन्ते च परमं पदम् ॥
जो देव चक्रधारी श्री विष्णु भगवान की आरती नियमित रूप से देखता है, वह सात जन्मों तक ब्राह्मण होते हुए अंत में परमपद को प्राप्त होता है।
“विष्णुधर्मोत्तर” में कहा गया है-
धूपं चारात्रिकं पश्येत् कराभ्यां च प्रवन्दते ।
कुलकोटिं समुद्धृत्य याति विष्णोः परं पदम् ॥
जो धूप और आरती देखता है और दोनों हाथों से आरती लेता है, वह करोड़ों पीढ़ियों का उद्धार करता है और भगवान विष्णु के परमपद को प्राप्त होता है।
आरती कैसे करनी चाहिए?
आरती में पहले मूलमंत्र (जिस देवता का जिस मंत्र से पूजन किया गया हो, उस मंत्र) के द्वारा तीन बार पुष्पांजलि देनी चाहिए। फिर, ढोल, नगारे, शंख, घड़ियाल आदि महावाद्यों के साथ जय-जयकार के शब्दों के साथ शुभ पात्र में घी या कपूर से विभिन्न बत्तियों को जलाकर आरती करनी चाहिए।
ततश्च मूलमन्त्रेण दत्त्वा पुष्पाञ्जलित्रयम् ।
महानीराजनं कुर्यान्महावाद्यजयस्वनैः ।।
प्रज्वलयेत् तदर्थं च कर्पूरेण घृतेन वा ।
आरार्तिकं शुभे पात्रे विषमानेकवर्तिकम् ॥
आमतौर पर पाँच बत्तियों से आरती की जाती है, जिसे ‘पञ्चप्रदीप’ भी कहते हैं। कुछ लोग एक, सात या उससे भी अधिक बत्तियों से आरती करते हैं। आरती को कपूर से भी कर सकते हैं। पद्म पुराण में इसका उल्लेख है।
कुङ्कुमागुरुकर्पूरघृतचन्दननिर्मिताः l
वर्तिकाः सप्त वा पञ्च कृत्वा वा दीपवर्त्तिकाम् ।।
कुर्यात् सप्तप्रदीपेन शङ्खघण्टादिवाद्यकैः ।
“कुंकुम, अगर, कपूर, घी और चंदन की सात या पांच बत्तियाँ बना कर या दीये की (रूई और घी की) बत्तियाँ बना कर सात बत्तियों से शंख, घंटा आदि को बजाते हुए आरती करनी चाहिए।”
आरती के कितने अंग होते हैं?
आरती के पांच अंग होते हैं –
पञ्च नीराजनं कुर्यात् प्रथमं दीपमालया ।
द्वितीयं सोदकाब्जेन तृतीयं धौतवाससा ॥
चूताश्वत्थादिपत्रैश्च चतुर्थं परिकीर्तितम् ।
पञ्चमं प्रणिपातेन साष्टाङ्गेन यथाविधि ॥
प्रथम दीपक के द्वारा, दूसरे जलयुक्त शंख से, तीसरे धुले हुए वस्त्र से, चौथे आम और पीपल के पत्तों से, और पाँचवें साष्टाङ्ग दण्डवत से आरती करें।
आरती कैसे घुमानी चाहिए?
आरती उतारते समय सबसे पहले भगवान की प्रतिमा के चरणों में उसे चार बार घुमाए, फिर दो बार नाभि क्षेत्र में, एक बार मुख मंडल पर, और सात बार समस्त अंगों पर घुमाए।
आदौ चतुः पादतले च विष्णो-
द्वौं नाभिदेशे मुखबिम्ब एकम्।
सर्वेषु चाङ्गेषु च सप्तवारा-
नारात्रिकं भक्तजनस्तु कुर्यात् ॥
आरती क्या है और क्यू की जाती है?
आरती हिंदू धर्म का एक प्रमुख धार्मिक अभिषेक है जो पूजा के अंत में की जाती है। इसमें प्रकाशित दीपक, प्रार्थना और स्तोत्रों के गान सहित होता है। यह देवी-देवताओं की कृपा और सुरक्षा के लिए की जाती है, और भक्ति और धन्यवाद का प्रतीक है।
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